हरि सर की याद में… स्मृति शेष सर, ऐसे क्यों चले गए? हमें छोड़कर… शंभूनाथ चौधरी

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हरि सर की याद में… स्मृति शेष 

सर, ऐसे क्यों चले गए? हमें छोड़कर…

शंभूनाथ चौधरी

रांची। आज हरि सर के श्राद्ध कर्म का द्वादशा था। चित्र के सामने फूल चढ़ाए। हाथ जोड़े। दिल भीग गया। यादों का सैलाब उमड़ पड़ा। अनगिनत बातें… सैकड़ों किस्से। पूरे पच्चीस बरस की स्मृतियां आंखों के सामने चलचित्र की तरह गुजरने लगीं। 3 अगस्त को हरि सर चले गए-अनंत यात्रा पर। उसके बाद कई दिन तक आंखें आंसुओं से गुफ्तगू करती रहीं। भावनाएं इतनी भारी थीं कि कलम उठी नहीं। लिखना चाहता था…पर शब्द साथ छोड़ देते थे। आज भी पूरी तरह साथ नहीं दे रहे। फिर भी, कोशिश कर रहा हूं। 2 अगस्त 2000। ‘हिन्दुस्तान’ में उनके अधीन मेरी जॉइनिंग हुई। इससे पहले पांच साल रांची एक्सप्रेस में था। हरि सर ने दोगुनी तनख्वाह पर बुलाया। पहले से जानते थे मुझे। पांच-सात बार मुलाकात हो चुकी थी। पर हिन्दुस्तान में औपचारिक इंट्रोडक्शन कराया मेरे मित्र अजय शर्मा ने। दीपक अंबष्ट भैया ने हरि सर से जोरदार सिफारिश की थी। ‘रांची एक्सप्रेस’  में पहली नौकरी बैजनाथ मिश्र सर ने दी थी। यह नौकरी भी दीपक भैया और अरुण चौधरी भैया की सिफारिश पर मिली थी। खैर, हरि सर के अधीन काम शुरू हुआ तो पहली बार कंप्यूटर पर काम करना सीखा। रांची एक्सप्रेस में तो कलम और कागज का दौर था। पत्रकारिता में जो कुछ हूं, उसमें उनका अवदान सबसे बड़ा है। संघर्ष करना, चुनौतियों के सामने डट जाना, खबरों को धार देना…और डेस्क पर रहते हुए भी फील्ड में उतरने का जज्बा, सब उनसे सीखा। मेरे पेशेवर जीवन का सबसे बड़ा हिस्सा उनकी छांव में बीता। तीन बार उनके साथ काम किया। पहली बार हिन्दुस्तान में उपसंपादक के तौर पर, पांच साल। दूसरी बार चीफ सब एडिटर और डीएनई, दो साल दस महीने। तीसरी बार खबर मन्त्र  में स्थानीय संपादक, पौने दो साल। यानी, इन पच्चीस बरस में करीब दस साल वे मेरे बॉस रहे। लेकिन 2000 के बाद, चाहे उनके साथ रहा या दूर- वो हमेशा मेरे बॉस ही रहे। हमारा रिश्ता सिर्फ दफ्तर का नहीं था। हक से आदेश देते। अधिकारपूर्वक असाइनमेंट सौंपते। और मैं, उनके भरोसे को निभाने की पूरी कोशिश करता। ऐसी कई कहानियां हैं। उनपर बाद में आऊंगा। फिलहाल पीछे लौटता हूं। ‘हिन्दुस्तान’ में शुरुआत के तीन साल…सच कहूं तो, बहुत नहीं जमे। इन्क्रीमेंट मामूली हुआ। दिल में थोड़ी कसक रही। फिर धीरे-धीरे उनका भरोसा जमा। सिटी इंचार्ज बना दिया। लेकिन कागज पर प्रमोशन का नाम नहीं आया। इस बीच, 2005 में  ‘अमर उजाला’  से प्रस्ताव आया। प्रमोशन के साथ, बेहतर सैलरी के साथ। मन डोल गया। मैं निकल पड़ा…बिना हरि सर को बताए। जानता था, अगर बता दिया, तो जाना मुश्किल हो जाएगा। वो रोक लेंगे। संयोग देखिए- 2 अगस्त 2000 को ‘हिन्दुस्तान’ जॉइन किया था, और ठीक पांच साल बाद, उसी तारीख को ‘अमर उजाला’, चंडीगढ़ में जॉइनिंग हुई। वहीं से इस्तीफा फैक्स कर दिया-हरि सर के नाम। साथ में एक पत्र- “सर, प्रमोशन और बेहतरी के लिए जाना पड़ा।” इसके बाद मोबाइल बंद कर दिया, ताकि उनकी कॉल का सामना न करना पड़े। लेकिन, अगले ही दिन, 3 अगस्त को अमर उजाला, चंडीगढ़ के लैंडलाइन पर उनका फोन आ गया। “तुमने इस तरह क्यों छोड़ दिया? एक प्रमोशन के लिए चले गए? अरे, मैं तुम्हारे प्रमोशन का प्रस्ताव हेडक्वार्टर भेज चुका हूं! “मैं चुप था। उन्होंने कहा- “तुम तुरंत लौट आओ।” मैंने याचना की-“सर, अभी छोड़ दीजिए…अमर उजाला में उदय सर ने भरोसे से बुलाया है।” हरि सर बोले- “ठीक है, आज नहीं तो कल… तुम्हें लौटना पड़ेगा।” और सचमुच…सवा दो साल बाद लौटा। हरि सर के आदेश पर। एक और प्रमोशन और अच्छी सैलरी के साथ। संयोग देखिए- जिस 3 अगस्त 2005 को उन्होंने मुझसे पूछा था, “तुमने इस तरह क्यों छोड़ दिया?” उसी तारीख को, 20 साल बाद… वो हमें छोड़कर चले गए। आज मन बार-बार पूछता है-“सर, आप ऐसे क्यों चले गए… हमें छोड़कर?” यादें अनगिनत हैं…बयान करूंगा, आगे भी।

हरि सर कहा करते थे सुनील तुम को मैनेज करने के लिए सिखना होगा, बाकी पत्रकारिता के सारे गुण तुम्हारे पास है

देवघर। आज जब मैं अपने अजीज मित्र, परिवारिक सदस्य जैसे, मेरे मार्गदर्शक शंभूनाथ चौधरी द्वारा हम सबों के अभिभावक हरि सर की याद में लिखी गई लेखनी को पढ़ा तो मुझे हरि सर सहित अन्य के साथ हजारीबाग, रांची व देवघर में बिताए पुराने दिनों की याद आ गई। जिस दिन हरि सर हम सबों को छोड़कर चले गए तो मैं तरह-तरह की यादें आने लगी। मैं रांची जाना चाहा लेकिन किन्हीं कारणों से नहीं जा सका, मैं उदास हो गया। हरि सर के साथ बिताए पल को याद कर आंखें नमन हो गई। जिस कारण कुछ लिख नहीं पाया सिर्फ शत शत नमन के। चूंकि मैं पिछले कई दिनों या यूं कहें कि एक माह से दुःख में हुं, कभी मेरे परिवार व रिश्तेदार तो कभी मित्र व शुभचिंतकों के निधन से शोक में रहा हूं। अब तो हमें कलम की धार को तेज करने का बल देने मेरे अभिभावक हरि सर ने साथ छोड़ दिया है। हरि सर ने मुझे हिंदी दैनिक खबर मंत्र में देवघर जिले की जिम्मेवारी दी, तो आजाद सिपाही में हजारीबाग जिले की जिम्मेवारी दी थी। उसमें मेरे आजिज मित्र व मार्गदर्शक शंभूनाथ चौधरी की सिफारिश थी। अखबार में काम करने का साथ छुटने के बाद भी हरि सर अक्सर फोन कर बातचीत करते और यदि कोई काम होता तो आदेश देते उस समय भी लगता था कि मैं हरि सर के अधीन काम कर रहा हूं। हरि सर स्वयं पत्रकारिता की चलंत पाठशाला थे। स्पष्टवादी होने के मुझे गुस्सा होता था तो हरि सर मुझे कहा करते थे सुनील तुम को मैनेज करने के लिए सिखना होगा, बाकी पत्रकारिता के सारे गुण तुम्हारे पास है। हरि सर को शत शत नमन।।

एक झटके में मैं अपनी तस्वीर को नहीं पहचान सका

आज मेरे अजीज मित्र शंभूनाथ चौधरी ने सोशल मीडिया फेसबुक में देवघर की जो तस्वीर पोस्ट की उस 2013 की तस्वीर में मैं स्वयं अपनी तस्वीर को एक नजर में नहीं पहचान सका। आज नीरज सिन्हा जी नहीं है लेकिन उनकी अन्य लोग को एक झटके में तस्वीर को पहचान लिया। साथ ही उस दौरान देवघर परिसदन व बाबा मंदिर में दर्शन के दौरान बिताए पल एक झटके में याद आ गया। 

Baba Wani
Author: Baba Wani

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