
हुल दिवस पर रामादेवी बाजला महाविद्यालय में सिद्धों कान्हु को किया गया याद
यह दिन आदिवासियों के संघर्ष की गाथा और बलिदान को बयान करता है: डॉ सुचिता
यह जनजातीय आंदोलनों में संभवत: सबसे व्यापक एवं प्रभावशाली विद्रोह था: डॉ प्रकाश
देवघर। सोमवार को हुल दिवस के मौके पर स्थानीय रमा देवी बाजला महिला महाविद्यालय में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत सिदो मुर्मू एवं कान्हु मुर्मू के तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर कुल गीत के साथ किया गया। मौके पर प्राचार्या डॉ सुचिता कुमारी ने कहा कि हर साल 30 जून को हूल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसे संथाल विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन उन आदिवासियों के संघर्ष की गाथा और बलिदान को बयान करता है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लिया था। वहीं डॉ प्रकाश चन्द्र दास विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग ने कहा कि संथाल हूल दिवस जिसे संथाल विद्रोह दिवस, आदिवासी गौरव दिवस एवं स्वतंत्रता सेनानी दिवस के नाम से भी जाना जाता है। झारखंड के इतिहास में होने वाले सभी जनजातीय आंदोलनों में संभवत: सबसे व्यापक एवं प्रभावशाली विद्रोह था। वर्तमान झारखंड के पूर्वी क्षेत्र जिसे संथाल परगना दामन-ए-कोह (भागलपुर व राजमहल पहाड़ियों के आसपास का क्षेत्र) के नाम से जाना जाता है। यह दिवस आदिवासी समुदाय के संघर्ष और बलिदान को याद दिलाता है। आदिवासी संस्कृति और पहचान को बढ़ावा देता है। साथ ही यह आदिवासी समुदाय में एकता और गौरव की भावना को बढ़ाता है। कार्यक्रम में डॉ प्रकाश चन्द्र दास, डॉ किसलय सिन्हा, डॉ रेखा कुमारी गुप्ता, ममता कुजूर, निमिषा रिचर्ड होरो, डॉ नृपांशुलता, रजनी कुमारी, आश कुमारी, डॉ सीमा सिंह, डा बिपिन कुमार, जैनीस इरी तिग्गा, सुनिला इक्का, हेलना किस्कू, शिखा सोनली एक्का, सबा परवीन, नीमा कुमारी, डा श्याम सुंदर महतो सहित महाविद्यालय के सभी शिक्षकेत्तर कर्मचारी उपस्थित थे। मंच संचालन डॉ रेखा कुमारी गुप्ता के द्वारा किया गया एवं धन्यवाद ज्ञापन ममता कुजूर के द्वारा किया गया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगाण के साथ किया गया।










