बैकुंठ चतुर्दशी व्रत 2025 : शिव-विष्णु की संयुक्त आराधना से मिलती है बैकुंठ धाम की प्राप्ति, जानें महत्व, पूजा विधि और पौराणिक कथा

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

बैकुंठ चतुर्दशी व्रत 2025 : शिव-विष्णु की संयुक्त आराधना से मिलती है बैकुंठ धाम की प्राप्ति, जानें महत्व, पूजा विधि और पौराणिक कथा

हजारीबाग के श्री नृसिंह स्थान मंदिर में भक्तों का लगा सैलाब, हरिहर मिलन का पर्व आज

हजारीबाग। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाने वाला बैकुंठ चतुर्दशी व्रत इस वर्ष 4 नवंबर (मंगलवार) को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु (श्री हरि) की संयुक्त रूप से पूजा करने की परंपरा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जो भक्त इस दिन दोनों देवों की आराधना करता है, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

🕉️ श्री नृसिंह स्थान मंदिर में विशेष पूजा की तैयारी

हजारीबाग स्थित श्री नृसिंह स्थान मंदिर में इस पावन अवसर पर भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव संयुक्त रूप से विराजमान हैं। मान्यता है कि इस दिन यहां पूजा करने से भक्त को दोनों देवताओं का आशीर्वाद एक साथ प्राप्त होता है।
मंदिर के प्रधान पुजारी डॉ. उपेंद्र मिश्रा ने बताया कि बैकुंठ चतुर्दशी पर हर वर्ष विशेष पूजन, दीपदान और कथा आयोजन होता है। श्रद्धालु सुबह गंगा स्नान, दान-पुण्य और पूजा-पाठ कर व्रत का पालन करते हैं।

🙏 बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व

बैकुंठ चतुर्दशी को बैकुंठ चौदस के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव के हरिहर मिलन का प्रतीक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सृष्टि का कार्य भगवान शिव को सौंपकर विश्राम करते हैं, और देवउठनी एकादशी पर पुनः जागते हैं।
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव सृष्टि का प्रभार वापस भगवान विष्णु को सौंपते हैं। इस प्रकार, यह दिन सृष्टि के पुनर्संतुलन का पर्व माना जाता है।

🌸 शिव-विष्णु पूजन की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु काशी पहुंचे और उन्होंने भगवान शिव की एक हजार स्वर्ण कमलों से पूजा करने का संकल्प लिया। भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल कम कर दिया। जब भगवान विष्णु ने देखा कि एक कमल कम है, तो उन्होंने अपने एक नेत्र (जो कमल के समान है) को अर्पित करने का विचार किया।
उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और बोले,

> “आज से यह दिन बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगा। जो इस दिन पहले तुम्हारा पूजन करेगा, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी।”

इसी कारण इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की संयुक्त पूजा का विशेष महत्व है।

📖 क्या करें इस दिन — व्रत और पूजन विधि

1. प्रातःकाल स्नान करें, विशेषकर किसी पवित्र नदी या तालाब में।

2. भगवान शिव और विष्णु दोनों की एक साथ पूजा करें।

3. श्रीमद्भागवत गीता, विष्णु सहस्रनाम और शिव चालीसा का पाठ करें।

4. सप्तऋषि पूजन का विशेष महत्व माना गया है।

5. रात में तालाब या नदी के किनारे 14 दीपक जलाएं, इसे मोक्षदायिनी परंपरा माना गया है।

6. श्राद्ध और तर्पण करें — इस दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण करने का विधान है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जो भक्त इस दिन एक हजार कमल पुष्पों से भगवान विष्णु और शिव की आराधना करता है, उसे जन्म-मरण के बंधनों से मुक्ति मिलती है और वह बैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।

💫 कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली पर शुभ योग

इस बार कार्तिक पूर्णिमा 5 नवंबर (बुधवार) को मनाई जाएगी। इस दिन शिववास योग और अमृत सिद्धि योग का संयोग बन रहा है।
डॉ. उपेंद्र मिश्रा ने बताया कि इस शुभ योग में गंगा स्नान, दीपदान और दान-पुण्य का विशेष महत्व रहेगा।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन

पवित्र नदियों में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है।

इस दिन अन्न, वस्त्र और धन दान करने से पुण्य कई गुना बढ़ जाता है।

इस तिथि पर देव दीपावली का पर्व भी मनाया जाएगा, जिसे “देवताओं की दीपावली” कहा जाता है।

🔱 त्रिपुरी पूर्णिमा और भगवान त्रिपुरारी की कथा

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने असुर त्रिपुरासुर का वध कर धर्म की रक्षा की थी।
इसलिए शिव इस दिन त्रिपुरारी नाम से पूजे जाते हैं।
कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा की रात चंद्रमा के उदय के समय शिव का पूजन करने से व्यक्ति को पूरे वर्ष के समान पुण्य प्राप्त होता है।

🌼 बैकुंठ चतुर्दशी व्रत का फल

जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव और विष्णु का पूजन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

जीवन में सुख-समृद्धि, संतोष और मानसिक शांति का वास होता है।

माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने वाले भक्त के लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं।

🕯️ निष्कर्ष

बैकुंठ चतुर्दशी व्रत भक्ति, श्रद्धा और मोक्ष का पर्व है। यह दिन हरिहर मिलन का प्रतीक है, जो बताता है कि शिव और विष्णु में कोई भेद नहीं — दोनों एक ही सत्य के दो स्वरूप हैं।
इस दिन का पालन श्रद्धा से करने पर भक्त को न केवल सांसारिक सुख प्राप्त होता है, बल्कि बैकुंठ धाम की प्राप्ति भी होती है।

Baba Wani
Author: Baba Wani

Leave a Comment

और पढ़ें