नवरात्र के अष्टमी को माता महागौरी की व्रत कथा का पाठ करने से दुःखों से मिलेगी मुक्ति
शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के पूजा पंडाल व मंदिरों में अहले सुबह से उमड़ी भक्तों की भीड़
देवघर। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की उपासना की जाती है। अष्टमी तिथि पर भक्त माता महागौरी की पूजा करने के लिए देवघर के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के पूजा पंडालों व मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ अहले सुबह से उमड़ पड़ी। भक्तगण अष्टम महागौरी के साथ मां दुर्गा की आराधना कर परिवार के कुशलता की कामना की। जिले के घड़ीदार मंदिर, बाबा मंदिर, ऊपर बिलासी, कृष्णापुरी, पुरनदाहा सहित बिशनपुर, कुकराहा, तलझारी, मधुपुर, सारवां, सारठ, मोहनपुर, देवीपुर सहित अन्य क्षेत्रों में पूजा अर्चना करने के लिए अहले सुबह से दोपहर तक भक्तों के भीड़ करने की संभावना है। देवी महागौरी को सौम्यता और करुणा की प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि अष्टमी के दिन विधिपूर्वक उनकी आराधना और उनकी कथा का पाठ करने से जीवन में आ रही कठिनाइयां दूर होती हैं। साथ ही मानसिक शांति और आर्थिक उन्नति प्राप्त होती है। माता महागौरी का वाहन वृषभ है और वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। उनका यह स्वरूप भक्तों को सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि देता है। माता महागौरी का रंग अत्यंत उज्ज्वल और गोरा है। यही कारण है कि उन्हें महागौरी कहा जाता है। उनका स्वभाव कोमल और दयालु है। माता के चार भुजाओं में से दो में त्रिशूल और डमरू हैं, जबकि अन्य दो हाथ अभय और वर मुद्रा में रहते हैं। उनके श्वेत वस्त्र और दिव्य आभा को देखकर भक्त उनकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। शास्त्रों में उन्हें श्वेतांबरधरा और अन्नपूर्णा का स्वरूप भी कहा गया है। मान्यता के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया। लंबे समय तक जंगलों में साधना करते हुए उनका शरीर धूल और मिट्टी से ढक गया, जिससे उनका रंग काला दिखाई देने लगा। अंततः उनकी भक्ति और तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने विवाह का वचन दिया। जब देवी ने स्नान किया तो उनकी वास्तविक गौरवर्ण आभा प्रकट हुई। तभी से वे महागौरी के नाम से जानी गईं। एक अन्या कथा के अनुसार जब शुंभ और निशुंभ राक्षसों ने धरती पर उत्पात मचाया तो उनका वध केवल देवी शक्ति ही कर सकती थीं। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती की काया को काला कर दिया। अपने वास्तविक स्वरूप को पुनः प्राप्त करने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की। उनकी साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें मानसरोवर में स्नान करने का निर्देश दिया। स्नान के बाद उनका रूप पुनः श्वेत हो गया और उन्हें कौशिकी नाम से जाना गया। इसी स्वरूप में उन्होंने राक्षसों का संहार किया। नवरात्रि की अष्टमी पर मां महागौरी की आराधना से भक्तों को असीम आशीर्वाद मिलता है। यह दिन आध्यात्मिक उत्थान, मानसिक शांति और जीवन में सकारात्मकता का संदेश देता है।
(नोट-यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए बाबा वाणी उत्तरदायी नहीं है।)
