
भगवान शिव व लंकापति रावण से जुड़ी है पावन बैद्यनाथ धाम की कहानी
लघुशंका से जब रावण वापस लौटा तो देखा कि शिवलिंग स्थापित हो चुका है
क्रोध में रावण द्वारा शिवलिंग को दबाने की कोशिश करने से शिवलिंग का कुछ हिस्सा जमीन में धंस गया था
सावन माह में बाबा बैद्यनाथ का आशीर्वाद पाने के लिए लाखों कांवरियां उत्तर वाहिनी गंगा जल चढ़ाने यहां आते हैं
देवघर। बाबा बैद्यनाथ मनोकामना ज्योतिर्लिंग झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित है। द्वादश ज्योतिर्लिंग में से इस ज्योतिर्लिंग को बाबा बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जानते हैं। इसे मनोकामना लिंग भी कहा जाता है। भगवान शिव के विश्व प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग नौवां ज्योतिर्लिंग है। सावन माह में उत्तर वाहिनी गंगा सुल्तानगंज से कांवर में गंगा जल भरकर पैदल या डाक कांवर लेकर बाबा बैद्यनाथ का आशीर्वाद पाने के लिए लाखों कांवरियां जल चढ़ाने आते है। बैद्यनाथ भूमि को चिता भूमि और यहां के ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहते हैं। यानी यहां दर्शन व पूजा-अर्चना करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी लंकापति रावण से जुड़ी है। कथा के अनुसार एक बार रावण के मन में इच्छा हुई कि वो अपनी लंका में भगवान शिव को स्थापित करे। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने घोर तपस्या की। रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए नौ सिर काटकर यज्ञ में अर्पित कर दिए। जब दसवां सिर काटने जा रहा था, तब भगवान शिव प्रकट हुए और रावण को वरदान मांगने के लिए कहा। रावण ने वरदान में भगवान शिव का आत्मलिंग (शिवलिंग) मांग दिया। साथ ही भगवान शिव ने यह शर्त रखी कि यह शिवलिंग जहां भी जमीन पर रखा जाएगा वहीं स्थायी रूप से स्थापित हो जाएगा। पौराणिक कथा के अनुसार अगर रावण शिवलिंग को लंका में स्थापित कर लेता, तो अनर्थ हो जाता। रावण की इसके पीछे की मंशा भगवान विष्णु समझ गए, उन्होंने देवताओं के हित में एक योजना बनाई। जब रावण आत्मलिंग को लेकर लंका जा रहा था, तब देवताओं ने वरुण देव को कहा आप रावण के पेट में जाएं, ताकि उसे लघुशंका की आवश्यकता हो। रावण जब लघुशंका के लिए जाने लगा तो उसे एक ग्वाला दिखा। रावण ने उस ग्वाले को शिवलिंग को पकड़ने की विनती की और लघुशंका के लिए चला गया। ग्वाले ने शिवलिंग थोड़ी देर तक तो पकड़े रखा, लेकिन अधिक भार होने के कारण उसने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। जमीन पर रखने से उस शिवलिंग की वही पर स्थापना हो गई। रावण जब वापस लौटा तो देखा कि शिवलिंग स्थापित हो चुका है। रावण की लाख कोशिशों के बाद भी शिवलिंग जमीन से नहीं हिला। क्रोध में रावण ने शिवलिंग को जमीन में दबाने की कोशिश की, जिससे शिवलिंग का कुछ हिस्सा जमीन में धंस गया। तब से भगवान शिव यहां बैद्यनाथ के रूप में वास करने लगे। पूर्व में स्थापित बाबा बैद्यनाथ के मनोकामना लिंग वह दबा हुआ भाग का दर्शन किया था। कालांतर में शंकराचार्य की उपस्थिति में दूसरे शिव लिंग की स्थापना की गई। जिसका दर्शन पूजा शिव भक्तों द्वारा आज के समय में किया जा रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जानकार बताते हैं कि रावण के कटे हुए सिरों की पीड़ा को ठीक करने के लिए भगवान शिव वैद्य के रूप में प्रकट हुए थे। इस कारण इस स्थान को बैद्यनाथ कहा गया है।









