संघर्षों से भरा रहा जीवन दिशुम गुरु शिबू सोरेन का जीवन सुनील झा

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संघर्षों से भरा रहा जीवन दिशुम गुरु शिबू सोरेन का जीवन

सुनील झा

देवघर। झारखंड आंदोलन के जनक, महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ आदिवासियों को जगाने वाले, धनकटनी आंदोलन और आदिवासी समाज को शिक्षित करने का अभियान चलाने वाले झारखंड के सबसे बड़े नायक शिबू सोरेन नहीं रहे। झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो दिशोम गुरु ने आज दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन से पूरे झारखंड में शोक की लहर है। शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक संरक्षक थे। वह यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान कोयला मंत्री रह चुके थे। हालांकि चिरूडीह हत्याकांड में नाम आने के बाद उन्होंने केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया था। 81 साल के दिशोम गुरु शिबू सोरेन का जन्म वर्तमान रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के नेमरा में 11 जनवरी 1944 को हुआ। गांव के ही स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा लिए दिशोम गुरु का जीवन संघर्षों भरा रहा। महज 13 साल की उम्र के थे, जब उनके पिता की हत्या महाजनों ने कर दी। इसके बाद शिबू सोरेन ने पढ़ाई छोड़ दी और महाजनों के खिलाफ संघर्ष का फैसला किया। पिता की हत्या के बाद वह इस बात को समझ गए थे कि पढ़ाई से ज्यादा जरूरी है महाजनों के खिलाफ आदिवासी समाज को इकट्‌ठा करना। उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ काम करना शुरू किया। 1970 में वे महाजनों के खिलाफ खुल कर सामने आए और धान कटनी आंदोलन की शुरुआत की। सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन चलाकर शिबू सोरेन चर्चित तो हुए, लेकिन महाजनों को अपना दुश्मन बना लिया।

पीएम नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी सहित अन्य जताया शोक, सीएम हेमंत व विधायक कल्पना को बंधाया ढांढस 

पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस लेने की सूचना पर अस्पताल में आम से खास लोगों का जुटान होने लगा। इसी क्रम में पीएम नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी सहित अन्य ने सर गंगाराम अस्पताल पहुंचे और शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि दी। साथ ही झारखंड के मुख्यमंत्री सह उनके पुत्र हेमंत सोरेन व विधायक गांडेय सह पुत्र वधू कल्पना सोरेन को ढ़ाढस बंधाया। श्रद्धांजलि देने वालों कई लोग शामिल हैं।

महाजनों के गुंडों ने घेरा तो बाइक समेत नदी में लगा दी छलांग
शिबू को रास्ते से हटाने के लिए महाजनों ने भाड़े के लोग जुटाए। उन दिनों आदिवासियों को जागरूक करने के लिए शिबू सोरेन राजदुत बाइक से गांव-गांव जाते थे। इसी दौरान एक बार उन्हें महाजनों के गुंडों ने घेर लिया। बारिश का सीजन था। बराकर नदी उफान पर थी। शिबू सोरेन समझ गए कि अब बचना मुश्किल है। उन्होंने आव देखा न ताव, अपनी रफ्तार बढ़ाई और बाइक समेत नदी में छलांग लगा दी। सभी को लगा उनका मरना तय है, लेकिन थोड़ी देर बाद शिबू तैरते हुए नदी के दूसरे छोर पहुंच गए। लोगों ने इसे दैवीय चमत्कार माना। आदिवासियों ने शिबू को ‘दिशोम गुरु’ कहना शुरू कर दिया। संथाली में दिशोम गुरु का अर्थ होता है देश का गुरु। दिशुम गुरु शिबू सोरेन बाइक के अलावा जीप व एंबेसेडर कार की सवारी किया करते थे।


सादगी के आगे राजनीतिक रसुख को कभी चढ़ने नहीं दिया
युवा अवस्था में रामगढ़ के नेमार गांव से बाहर निकलने के बाद दिशुम गुरु शिबू सोरेन ने छोटानागपुर के रास्ते संथाल परगना को मुख्य रूप से अपना कार्य क्षेत्र चुना। वैसे वह धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग सहित झारखंड के अन्य क्षेत्रों में भी भ्रमण किया करते थे। कभी भी उन्होंने अपनी सादगी के आगे राजनीतिक ओहदा को नहीं आने दिया। बात बहुत पुरानी है जब एकबार शिबू सोरेन जमशेदपुर से धनबाद जाने के क्रम में रात लगभग आठ बजे गिरिडीह जिले के निमियाघाट थाना पहुंचे। थाना में उस वक्त गिरिडीह के डीएसपी रहे भाजपा नेता लक्ष्मण प्रसाद सिंह थाने में मौजूद थे। शिबू सोरेन थाना प्रभारी की कुर्सी पर बैठे हुए थे और लक्ष्मण प्रसाद सिंह अतिथि कुर्सी पर बैठे थे। उस वक्त मैं शिबू सोरेन को चेहरे से नहीं जानता था। इस बीच जब मैं थाना प्रभारी कक्ष में प्रवेश किया तो यह दृश्य देखकर डीएसपी साहब से सवाल किया सर यह कौन है, जो थाना प्रभारी की कुर्सी पर बैठे हैं और आप अतिथि कुर्सी पर, लक्ष्मण सिंह जब तक जवाब देते इसके पूर्व ही उन्होंने अपनी जेब से एक परिचय पत्र निकाला और मेरे आगे रख दिया। परिचय पत्र में लिखा था शिबू सोरेन मेंबर आप पार्लियामेंट। यह घटना उस समय का जब हम युवा थे और सारी बात अच्छी तरह से समझ भी नहीं सकते थे। उनकी यह सादगी आज भी मेरे जेहन में तैर रहा है। इतना ही नहीं वह पैदल यात्रा भी किया करते थे। एक बार शिबू सोरेन देवघर जिले के सारवां के अजय नदी को पार करते हुए दासडीह गांव पहुंचे जहां एक मंद बुद्धि बालक ने उनसे हाथ मिलाया तो उन्होंने सहर्ष हाथ मिलाया और उससे बातचीत भी की। ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें शिबू सोरेन की सादगी झलकती है। इस सब के अलावा झारखंड अलग राज्य की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के दौरान आर्थिक नाकेबंदी के समय स्व बिनोद बिहारी महतो, स्व रामदयाल मुंडा आदि के साथ मिलकर गिरिडीह के निमियाघाट थाना क्षेत्र के जीटी रोड के संजय टाकीज के पास स्थित रेलवे फाटक समीप रोड जाम कर दिया था तो तीन दिनों तक वहीं डटे रहे और सरकार को हिला कर रख दिया था। इसके अलावा क ई मौके पर मैंने शिबू सोरेन को एक पत्रकार के नाते कवर किया, लेकिन कभी भी सादगी के आगे राजनीतिक रसुख को चढ़ने नहीं दिया।

 

तीन बार के मुख्यमंत्री कार्यकाल में शिबू सोरेन कभी पूरा नहीं सके कार्यकाल
पहली बार दस दिन में गिर गई सरकार
शिबू सोरेन 2 मार्च 2005 को पहली बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण दस दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 27 अगस्त 2008 को शिबू सोरेन दूसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। इस बार वे विधायक नहीं थे। इस कारण छह महीने में उन्हें चुनाव जीतकर विधानसभा का सदस्य बनना था। पांच महीने बाद 2009 में उपचुनाव हुआ। शिबू को एक सुरक्षित सीट की जरूरत थी, लेकिन कोई भी उनके लिए सीट छोड़ने को तैयार नहीं था। जो विधायक सीट छोड़ने को तैयार थे, वो मुश्किल सीट थी। तमाड़ विधानसभा में उपचुनाव का ऐलान हुआ। युपीए ने गठबंधन की ओर से शिबू का नाम रखा, लेकिन शिबू वहां से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। वह जानते थे कि तमाड़ मुंडा बहुल है। वहां मुश्किल हो सकती है। मजबूरी में शिबू सोरेन ने पर्चा दाखिल कर दिया। विरोधी के रूप में झारखंड पार्टी के राजा पीटर मैदान में थे। 8 जनवरी 2009 को परिणाम आया तो मुख्यमंत्री शिबू सोरेन करीब 9 हजार वोट से उपचुनाव हार गए थे। आखिर में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। तीन बार के कार्यकाल में शिबू सोरेन को 10 महीना 10 दिन ही राज्य की कमान संभालने का मौका मिला। शिबू सोरेन पहली बार 2 मार्च 2005 को झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। वे 2 मार्च से 12 मार्च यानी कि सिर्फ 10 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद शिबू सोरेन दूसरी बार 28 अगस्त 2008 को झारखंड के मुख्यमंत्री बने। इस बार उन्हें पांच महीने तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला। उन्होंने 18 जनवरी 2009 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। फिर तीसरी बार 30 दिसंबर 2009 को शिबू सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बने। इस बार फिर उन्हें पांच महीने ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला। उन्होंने 31 मई 2009 को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।

Baba Wani
Author: Baba Wani

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