नवरात्र का आज छठा दिन, मां स्कंदमाता की होगी पूजा, कल षष्ठी तिथि को बेलभरनी पूजा के साथ मां को दिया जाएगा आमंत्रण

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नवरात्र का आज छठा दिन, मां स्कंदमाता पूजा की होगी पूजा, कल षष्ठी तिथि को बेलभरनी पूजा के साथ मां को दिया जाएगा आमंत्रण 

बाबा मंदिर, घड़ीदार मंदिर सहित जिले के रोहिणी, विशनपुर, तलझारी, कुकराहा मंदिर में तांत्रिक विधि से की जाती है मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा 

सुनील झा

देवघर। शारदीय नवरात्र का आज छठा दिन है। लेकिन चौथे दिन की पूजा दो दिन होने के कारण आज शनिवार को पंचमी तिथि दिन के 9:30 बजे रहेगा जिसके कारण स्कंदमाता की पूजा होगी। पंडित शालीग्राम झा बताते हैं कि तत्पश्चात षष्ठी तिथि का प्रवेश होगा, लेकिन मां बेलभरनी की पूजा कल रविवार को प्रातः किए जाने के साथ मां दुर्गा को आमंत्रण दिया जाएगा। शहर में धूमधाम से मां दुर्गा की आराधना की जा रही है। जबकि महासप्तमी को मां दुर्गा की प्रतिमा वेदी पर स्थापित हो जाएगी। दुर्गा पूजा को लेकर शहर के बाबा मंदिर, घड़ीदार मंदिर, बिलासी टाउन, कृष्णापुरी, देवसंघ, पुरनदाहा सहित जगह-जगह पूजा पंडाल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस साल 22 सितंबर से शुरू शारदीय नवरात्र का समापन 2 अक्टूबर को विजयादमी के दिन होगा। दुर्गा की आराधना कहीं वैष्णव विधि से तो कहीं तांत्रिक विधि से की जाती है। जिले के पांच ऐसे दुर्गा मंदिर हैं, जहां पर मां दुर्गा की पूजा आराधना मुगल काल से ही चलती आ रही है और तांत्रिक विधि से पूजा आराधना की जाती है। जहां पर पूजा आज भी राजघराने के परिवार करते हैं। रोहिणी स्थित दुर्गा मंदिर में इस्टेट परिवार की ओर से करीब 200 सालों से माता की पूजा की जा रही है। यह शहर की सबसे पुराना दुर्गा पूजा माना जाता है। यहां मां की पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है। कलश स्थापना के दिन से ही यहां मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है। संजीव देव ने बताया कि दुर्गा मंदिर में करीब 200 साल से पूजा की जा रही है। यहां की पूजा रोहिणी इस्टेट के ठाकुर घराने के पूर्वजों द्वारा शुरु की गयी थी। इस मंदिर की सबसे खास परंपरा यह है कि नवरात्र के पहले दिन से ही यहां पर बलि की शुरुआत हो जाती है। दूर दराज से लोग यहां पर अपनी मुराद पूर्ण कराने के लिए पहुंचते हैं। वहीं शहर के घरीदार समाज के द्वारा मां दुर्गा मंदिर में मां की जाती है पूजा की जाती है। बाबा बैद्यनाथ मंदिर के पूरब दरवाजा के समीप स्थित इस मंदिर में मां दुर्गा की पूजा 1446 ई. से करने की परम्पर चलती आ रही है। यहां पर सबसे पहला पूजा पीताम्बर घड़ीदार ने किया था और आज उनकी 14 वीं पीढ़ी पूजा कर रही है।

जिले के सारवां देवघर मार्ग में बैजनाथपुर के बिशनपुर दुर्गा मंदिर में राजा काल से ही बिशनपुर गढ़ घटवाल समाज के पूर्वज राजा मर्दन सिंह के द्वारा विशेष आराधना कर भीतर खंड मंदिर से लाकर यहां स्थापित किया गया है। यहां तांत्रिक विधि से पूजा पाठ की जाती है। बिशनपुर गढ़ के जमींदार मर्दन सिंह की सातवीं पीढ़ी के वंशज राजेश कुमार सिंह, खनेश कुमार सिंह व राजेंद्र सिंह बताते है कि1600 ई के आसपास दुर्गा पूजा शुरू हुई। यहां पर मांगी गयी हर मुराद जरूर पूर्ण होती है।

सारठ प्रखंड के तलझारी गांव दुर्गा मंदिर में राजपरिवार के लोग पूजा आराधना करते है। यहां पर 22 गांव के लोग पूजा आराधना करने के लिये लोग आते है। मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 1627 में महाराष्ट्र से तुलम सिंह आए और यहीं बस गए। उन्होंने मां दुर्गा की स्थापना की। कालांतर में मंदिर का निर्माण हुआ। दो वर्ष पूर्व दक्षिण भारतीय वास्तुकला पर आधारित इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया।  इस कार्य को तेलंग बंधुओं ने अंजाम देकर भव्य मंदिर का रूप दिया। ठाकुर घराने के संजीव शंकर सिंह व सुनील कुमार सिंह कहते हैं कि परिवार के सदस्यों की संख्या बढ़ती गई और उनके पूर्वज 22 गांव में बस गए। जिसमें तालझारी, सहरजोरी, अंबाकनाली, बंदरीसोल, सारवां प्रखंड के नकटी, मनीगढ़ी, ढांगा, नागरा समेत 22 गांव में बसे उनके पूर्वजों के वंशजों की कुलदेवी मां दुर्गा है। सारठ प्रखंड के कुकराहा दुर्गा मंदिर में करीब पांच सौ वर्षो से भी ज्यादा से मां दुर्गा की पूजा की जा रही है। खास बात यह है कि इस मंदिर माता दुर्गा की मूर्ति नहीं बनाई जाती है बल्कि माता विंध्याचल के स्वरुप को पूजा जाता है। मान्यता है कि माता विंध्याचल खुद यहां पर वास की है। कुकराहा इस्टेट के वंंशज बताते है कि मंदिर का निर्माण वंशराज सिंह ने 1865 में कराया था। इस मंदिर मे तांत्रिक विधि से पूजा आराधना की जाती है। इस मंदिर मे सच्चे मन से मां दुर्गा की पूजा आराधना करने से बड़े से बड़े बीमारी ठीक हो जाती है। मंदिर के पुजारी कहते है कि यहां पर मुराद पूर्ण होने पर भैसों की बलि दी जाती है।

Baba Wani
Author: Baba Wani

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