
प्रदेश भाजपा कार्यकारी अध्यक्ष पद से रविंद्र राय को हटाये जाने के समय व परिस्थिति पर असंतोष
सबसे बड़ा सवाल: क्या नये कार्यकारी अध्यक्ष को रघुवर दास का साथ मिलेगा
नये प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति तक झारखंड भाजपा में शीत युद्ध की होगी राजनीति
सुनील झा
देवघर। झारखंड प्रदेश भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष पद से रविंद्र राय को हटाये जाने के बाद पार्टी के अंदर भारी अविश्वास व असंतोष की स्थिति बनी हुई है। आदित्य प्रसाद साहु को कार्यकारी अध्यक्ष बना कर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की राह रोक देने का इशारा से अजीब तरह का उबाल है। राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा को पहले से ही किनारे लगाया गया है। भाजपा के कार्यप्रणाली पर अब तरह तरह के सवाल खड़े किए जाने लगे हैं। पूछा जाने लगा है कि जब महीना दो महीने में प्रदेश अध्यक्ष बनाया ही जाना था तो एक कार्यकारी अध्यक्ष को हटा कर दूसरा कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का अभी क्या औचित्य था? जब झारखंड में फिलहाल कोई चुनाव भी नहीं है। झारखंड में केवल आदिवासियों व पिछड़ों को विशेष प्रश्रय दिए जाने से भी अगड़ी जातियों में असंतोष के साथ आक्रोश दिखने लगा है। बड़े नेताओं के बीच आपस में असंतोष, अविश्वास और आक्रोश का भाव बेहतर संकेत नहीं दे रहा है। हमारे नेता और संगठनकर्ता कौन, निष्ठावान कार्यकर्ता उस सख्श की तलाश में परेशान है।हालांकि मौकापरस्त समय के साथ पाला बदलते जा रहे हैं।
1975 से पार्टी को खड़ा करने में पूरी ऊर्जा लगा दी: रविंद्र राय
कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटाये जाने पर रवींद्र कुमार राय ने आदित्य साहु को बधाई दी और उनकी सफलता की कामना की। केंद्रीय नेतृत्व के प्रति भी आभार प्रकट किया। उन्होंने आगे कहा कि 1975 से उन्होंने पार्टी को खड़ा करने में अपनी पूरी ऊर्जा लगायी है, अब जो भी इसे सींचने और आगे बढ़ाने का काम करेगा, उसके साथ रहूंगा। वहीं भाजपा के सूत्र बताते हैं कि रवींद्र कुमार राय की संगठनात्मक कार्यप्रणाली को लेकर ऊपर तक शिकायत की जाने लगी थी। इसमें कई तरह के कारक एक साथ काम कर रहे थे। झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले टिकट नहीं मिलने पर रवींद्र राय बहुत खफा हुए थे। नाराजगी इस कदर उत्पन्न हुआ कि वह हेमंत सोरेन से मिलने मुख्यमंत्री आवास तक जा पहुंचे थे। लेकिन हिमंता बिस्व शरमा, राजनाथ सिंह व अन्य बड़े नेताओं ने कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर रवींद्र कुमार राय को मना लिया। उन्हें यह भी आश्वासन दिया गया कि बाबूलाल मरांडी को प्रतिपक्ष का नेता बनाया जा रहा है। इसलिए संगठन की जिम्मेवारी वे ही कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में निभाएंगे। लेकिन भाजपा के संविधान में कार्यकारी अध्यक्ष का पहले से कोई पद नहीं था। ना ही उसकी भूमिका ही रेखांकित थी।
विवादों की फेहरिस्त दिल्ली पहुंचने लगी थी
कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद रवींद्र कुमार राय को भी एहसास होने लगा कि वे कोई निर्णय नहीं ले सकते। निर्णय लेने में उन्हें तरह तरह की परेशानी भी होने लगी और आपसी विवाद भी खड़ा होने लगा। इन सब कारणों से वह कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में मिले संगठनात्मक दायित्वों के प्रति लापरवाही भी बरतने लगे। इस मूड में बताए जाने लगे कि जब कोई काम ही नहीं कर सकते, निर्णय ही नहीं ले सकते तो पद पर बने रहना बहुत लाभकारी नहीं है। इससे उत्पन्न होने वाले अन्य विवादों की फेहरिस्त दिल्ली पहुंचने लगी। फिर दशहरा से ठीक पहले भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटाये जाने का फरमान सुना दिया। भले ही पार्टी द्वारा उन्हें हटाये जाने संबंधी आदेश तीन अक्तूबर को दशहरा बाद जारी किया गया।

आदित्य साहु को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने दिया बिहार विधानसभा चुनाव में साकारात्मक संदेश
भाजपा के भीतर रवींद्र कुमार राय को हटाये जाने से अधिक इस निर्णय के समय और परिस्थिति पर सबसे अधिक आपत्ति व्यक्ति की जा रही है। कहा जा रहा है कि झारखंड में भाजपा आदिवासी-पिछड़ों की राजनीति को प्रमोट करना चाहती है। यह वोट की राजनीति में गलत भी नहीं है। यह भी कहा जा रहा है कि पिछड़े वर्ग से आनेवाले आदित्य साहु को कार्यकारी अध्यक्ष बना कर बिहार विधानसभा चुनाव में साकारात्मक संदेश देने की कोशिश की गयी है। लेकिन इस तर्क के विरोधियों का कहना है कि बिहार में अगर आदित्य साहु के कार्यकारी अध्यक्ष बनने से पिछड़ों का वोट आकर्षित होगा तो क्या वहां अगड़ों का वोट नहीं घटेगा। झारखंड के परिवेश में देखें तो आदित्य साहु के कार्यकारी अध्यक्ष बनने से फिलहाल यही संकेत मिल रहा है कि अब अध्यक्ष पद पर किसी पिछड़े का बैठना असंभव लगता है। इतना ही नहीं आदित्य साहु को अभी कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है तो उन्हें कुछ समय बाद इस पद से रुखसत भी नहीं किया जा सकेगा। उस परिस्थिति में या तो आदित्य साहु को ही प्रदेश अध्यक्ष की नयी जिम्मेदारी देनी होगी या फिर किसी अगड़ी जाति से अध्यक्ष बनाना होगा।

रघुवर दास, अर्जुन मुंडा व रवींद्र राय जैसे बड़े नेताओं में असंतोष
भाजपा आदिवासी समुदाय से आनेवाले बाबूलाल मरांडी को प्रतिपक्ष का नेता बना कर जातीय समीकरण को पहले ही साध चुका है। इस क्रम में यह भी देखना दिलचस्प होगा कि क्या पिछड़े समुदाय से कार्यकारी अध्यक्ष बने आदित्य साहु को अब उन्हीं की समुदाय से आने वाले रघुवर दास का साथ मिलेगा। क्योंकि पार्टी के भीतर से अब यह संकेत साफ आने लगे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बीच के मतांतरण के कारण रघुवर दास का एडजस्टमेंट नहीं हो पा रहा है। इस मतांतरण के पीछे पार्टी की सहमति के बगैर उड़ीसा के राज्यपाल पद से रघुवर दास के हटने की जिद्द को प्रमुख कारण बताया जा रहा है। इस परिस्थिति में जब रघुवर दास, अर्जुन मुंडा, रवींद्र राय जैसे बड़े नेताओं में असंतोष हो तो कार्यकर्ताओं के लिए किस नेता के नेतृत्व में वह विश्वास करे यह भारी संकट आ खड़ा हुआ है।

कार्यकारी अध्यक्ष बनाने में बाबूलाल मरांडी की भूमिका !
कहा जा रहा है कि आदित्य साहु को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने में बाबूलाल मरांडी की भूमिका रही है। जानकारों का मानना है कि नये प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति तक भाजपा में शीत युद्ध की राजनीति चलेगी। रवींद्र कुमार राय भी नये प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति या नये दायित्व के मिलने तक इंतजार में रहेंगे। उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। कुछ यही मनोभाव रघुवर दास की भी रहेगी। उड़ीसा के राज्यपाल पद से इस्तीफे के 10 महीने के बाद भी उन्हें अब तक कहीं जगह नहीं दिया जा सका है। शायद वह भी अगले प्रदेश अध्यक्ष के मनोनयन तक शांत रहेंगे। खूंटी संसदीय क्षेत्र से खुद और पोटका विधानसभा क्षेत्र से पत्नी मीरा मुंडा की हार के बाद से अर्जुन मुंडा किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है।










