
संघ के शताब्दी वर्ष को ले मधुपुर में पथ संचलन कार्यक्रम आयोजित
विजयादशमी उत्सव को ले संघ भवन में किया गया शस्त्र पूजन
देवघर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष को लेकर चहुंओर विजयादशमी उत्सव के मौके पर संचलन कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इसी सिलसिले में इसी सिलसिले में बुधवार को जिले के मधुपुर नगर मुख्यालय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा विजयदशमी उत्सव का भव्य आयोजन किया गया। मौके पर पथ संचलन व शस्त्र पूजन कार्यक्रम आयोजित किया गया। आरएसएस के स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण मधुपुर कुंडू बंगला स्थित संघ भवन परिसर में हुआ। जहां से सभी स्वयंसेवक अनुशासित तरीके से कतारबद्ध होकर संघ गीत गुनगुनाते हुए पथ संचलन कार्यक्रम में शामिल हुए। जबकि महेंद्र मुनि सरस्वती विद्या मंदिर के बच्चों द्वारा आकर्षक बैंड का धुन व बांसुरी वादन किया गया। पथ संचलन कार्यक्रम संघ भवन से शुरू होकर कुंडू बंगला, पंच मंदिर, थाना मोड़, राजवाड़ी, गांधी चौक, हटिया रोड़, भगत सिंह चौक व अग्रसेन बस्ती होते हुए पुनः संघ भवन पहुंच कर समाप्त हुआ। जहां शस्त्र पूजन करने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक विगेंद्र जी द्वारा बौद्धिक दिया गया। मौके पर उपस्थित स्वयंसेवकों द्वारा ध्वज प्रणाम व प्रार्थना करने के साथ ही विजयदशमी उत्सव के मौके पर शस्त्र पूजन कार्यक्रम भी आयोजित किया गया। मौके पर उपस्थित संघ के विभाग प्रचारक विगेंद्र जी व अन्य द्वारा शस्त्र पूजन करने के बाद अपना बौद्धिक दिया। मौके पर संघ के विभाग प्रचारक विगेंद्र जी, नगर संचालक ब्रह्मदेव मंडल, राज पलिवार, डॉ देवानंद प्रकाश, सचिन रवानी, मुकेश कुमार, डॉ राजीव रंजन, नीलू शर्मा, धनंजय तिवारी, विवेक मिश्रा, भारत भैया, बालकृष्ण, विपिन, मदन मोहन मिश्रा, मृत्युंजय भोक्ता, विनय कुमार, राजेश पंडित, अशोक गौड़ सहित अन्य स्वयंसेवक उपस्थित थे।

डॉ केशव बलिराम हेडगेवार राष्ट्रमंडल की एकात्मता, अनुशासन और संगठन के भाव पर बल दिया: विभाग प्रचारक
संघ के विभाग प्रचारक विजेंद्र जी ने अपना बौद्धिक देते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर प्रस्तुत यह बौद्धिक व्याख्यान संघ की शताब्दी यात्रा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, विचारधारा, संघर्ष, उपलब्धियों व भविष्य-रणनीति पर केंद्रित रहेगा। संघ के 100 वर्षों को चार विशिष्ट चरणों में विभाजित करते हुए, संघ-स्थापना से लेकर आज तक की निर्णायक घटनाओं को समेटता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितम्बर 1925, विजयादशमी के पावन अवसर पर डॉ केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर में की गई थी। उस समय भारत पराधीन था, हिंदू समाज में व्यापक विघटन, भय, हीनभावना फैली हुई थी और सांप्रदायिक दंगे-फसाद, आत्मरक्षा में असमर्थता जैसी सामाजिक विकृतियां थी। हेडगेवार बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के थे, उन्होंने अपने छात्रों और सहयोगियों के साथ मिलकर राष्ट्रमंडल की एकात्मता, अनुशासन और संगठन के भाव पर बल दिया।

डॉ साहब का व्यक्तित्व और संघर्ष
उन्होंने डॉ केशव बलिराम हेडगेवार एक अत्यंत निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी और महान आयोजक थे। वे दो बार ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आंदोलनों में भाग लेकर जेल गए। पहली बार 1908 में वन्दे मातरम् आंदोलन के दौरान और दूसरी बार 21 जुलाई 1930 में जंगल आंदोलन के लिए। उनके जेल जीवन अनुभवों ने उन्हें समझाया कि सामाजिक जागरण और अनुशासन से ही राष्ट्र को स्वतंत्र किया जा सकता है।
संघ की स्थापना का उद्देश्य
सन् 1925 तक यह स्पष्ट हो चुका था कि केवल राजनैतिक या बाह्य आंदोलनों के भरोसे स्वतंत्रता नहीं मिलेगी—समाज का सांगठनिक और सांस्कृतिक उत्थान जरूरी है। इसलिए डॉ. साहब ने आरएसएस की स्थापना की और उसका मूल उद्देश्य राष्ट्र की स्वतंत्रता बताते हुए हिन्दू समाज को संगठित करने पर बल दिया। सामाजिक समरसता, पंच परिवर्तन (शिक्षा, सेवा, संगठन, समरसता, नेतृत्व) अभियान का संचालन, तकनीकी, विज्ञान, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण एवं वैश्विक स्तर पर हिन्दू समाज की जागरूकता और संगठन है। कोरोना महामारी में सेवा कार्य, डिजिटलीकरण, ग्रामीण-शहरी बंधुत्व व सामाजिक नवोन्मेष रहा।

संघ का शताब्दी विजन
विभाग प्रचारक विगेंद्र जी ने कहा कि संघ का यह सौ वां वर्ष केवल उपलब्धियों का नहीं, बल्कि समाज को नया प्रेरणा-मार्ग देने का संकल्प वर्ष है। संघ का कार्य किसी एक विचार या संगठन तक सीमित नहीं, बल्कि समूचे राष्ट्र को एकात्मता, अनुशासन, और सामाजिक जिम्मेदारी से सशक्त बनाना है। आने वाले वर्षों में, संघ पंच परिवर्तन और सामाजिक सामंजस्य के साथ भारत को वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाने के लिए कृतसंकल्पित है।









