
जातिगत जनगणना से सामाजिक और आर्थिक समानता बढ़ाने की कोशिश: डॉ राजीव रंजन
देश में 74 साल बाद होने वाले जातीय जनगणना मोदी कैबिनेट का एक बड़ा फैसला
देवघर। शहर के प्रसिद्ध दंत चिकित्सक सह नरेंद्र मोदी विकास मिशन चलो गांव की ओर के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ राजीव रंजन ने केंद्र सरकार के जातिगत जनगणना कराने के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि देश में 74 साल बाद जातिगत जनगणना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कैबिनेट ने देश में जातिगत जनगणना कराने की घोषणा कर एक बड़ा फैसला लिया है। मोदी कैबिनेट ने आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने का महत्वपूर्ण फैसला लिया है। इस कदम का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देना है, साथ ही नीति निर्माण में पारदर्शिता लाना है। उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना को लेकर लंबे वक्त से विपक्षी दल मांग कर रहे थे। केंद्र सरकार का यह कदम सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देगा। साथ ही नीति निर्माण में पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें देश की आबादी को उनकी जाति के आधार पर बांटा जाता है। भारत में हर दस साल में होने वाली जनगणना में आमतौर पर आयु, लिंग, शिक्षा, रोजगार और अन्य सामाजिक-आर्थिक मापदंडों पर डेटा इकट्ठा किया जाता है। हालांकि 1951 के बाद से जातिगत डेटा को इकट्ठा करना बंद कर दिया गया था ताकि सामाजिक एकता को बढ़ावा मिले और जातिगत विभाजन को कम किया जा सके। फिलहाल केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या का डेटा इकट्ठा किया जाता है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग की जातियों का कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। केंद्रीय कैबिनेट का हालिया फैसला 2025 में होने वाली जनगणना में सभी जातियों के डेटा जुटाने की दिशा में एक बड़ा बदलाव है। यह फैसला सामाजिक-आर्थिक नीतियों को और प्रभावी बनाने के लिए लिया गया है। विशेष रूप से उन समुदायों के लिए जो इससे वंचित रहे हैं। भारत में जातिगत जनगणना का इतिहास औपनिवेशिक काल से जुड़ा है। पहली जनगणना 1872 में हुई थी और 1881 से नियमित रूप से हर दस साल में यह प्रक्रिया शुरू हुई। उस समय जातिगत डेटा इकट्ठा करना सामान्य था। आजादी के बाद 1951 में यह फैसला लिया गया कि जातिगत डेटा इकट्ठा करना सामाजिक एकता के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके बाद केवल एससी और एसटी का ही डेटा इकट्ठा किया गया। डॉ राजीव रंजन ने कहा कि पिछले कुछ सालों में सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव आया है। अब ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं की मांग काफी बढ़ गई है। ऐसे में जातिगत जनगणना की मांग फिर से जोर पकड़ने लगी। 2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना की थी, लेकिन इसके आंकड़े विसंगतियों के कारण सार्वजनिक नहीं किए गए। वहीं बिहार, राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों ने स्वतंत्र रूप से जातिगत सर्वे किए, जिनके नतीजों ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया। विपक्षी दल कांग्रेस, आरजेडी और सपा लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। भाजपा का सहयोगी दल जदयू भी जातीय जनगणना के पक्ष में था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे सामाजिक न्याय का आधार बताते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव में इसे प्रमुख मुद्दा बनाया था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने इस निर्णय को हरी झंडी दिखाकर विपक्ष की बोलती बंद कर दी है और प्रधानमंत्री ने विपक्ष महत्वपूर्ण मुद्दा उनके हाथ से छीन लिया है तो भी विपक्ष के पेट में दर्द होने लगा है।









