आज ही के दिन 23 जून को पुलिस हिरासत में रहस्यमय परिस्थितियों में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत हो गई थी

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डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर विशेष 

आज ही के दिन 23 जून को पुलिस हिरासत में रहस्यमय परिस्थितियों में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत हो गई थी 

सुनील झा 

देवघर। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी बौद्धिक घराने के देदीप्यमान नक्षत्र थे। उनका जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ था। उनके प्रपितामह स्वनामधन्य गंगा प्रसाद मुखोपाध्याय ने रामायण का प्रथम बांग्ला रूपांतरण किया था। उनके पिता आशुतोष मुखर्जी गणित के विश्वविख्यात विद्वान तथा बंगाल के प्रमुख शिक्षाविद थे। उनके पिता कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति तथा कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उनके द्वारा दान में दी गई 87000 पुस्तकें कोलकाता संग्रहालय में आशुतोष मुखर्जी खंड में आज भी सुरक्षित हैं।

स्वभाषा के प्रति प्रेम होने के कारण डॉ मुखर्जी ने अंग्रेजी के स्थान पर अपनी मातृभाषा बांग्ला में एमए किया था 

स्वभाषा के प्रति प्रेम होने के कारण अपने पिता के कहने पर डॉ मुखर्जी ने अंग्रेजी के स्थान पर अपनी मातृभाषा बांग्ला में एमए किया। 24 वर्ष की आयु में वे कोलकाता विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य बने। गणित में विशेष रुचि होने के कारण लंदन मैथमेटिकल सोसायटी ने उन्हें अपना सम्मानित सदस्य बनाया। 33 वर्ष की आयु में वे कोलकाता यूनिवर्सिटी के सबसे युवा कुलपति बने थे। 4 वर्षों तक कुलपति रहने के बाद वे कोलकाता विधानसभा पहुंचे थे। 26 नवंबर 1938 को कोलकाता विश्वविद्यालय ने डी लिट की उपाधि से उन्हें अलंकृत किया था। 1941- 42 के दौरान भारतीय विश्वविद्यालय संघ के वे 15 वें अध्यक्ष थे। 1943 से 1946 तक में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने थे। वे 9 दिसंबर 1946 से 24 जनवरी 1950 तक संविधान-सभा के सदस्य थे।

बंगाल विभाजन की मांग हिंदू-बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में शामिल होने से रोकने के लिए किया था

हम सभी जानते हैं  कि 1905 में बंगाल विभाजन का विरोध इस देश की जनता ने किया था, लेकिन 1946 में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल के विभाजन की मांग की थी। सुनने में आज यह थोड़ा अटपटा-सा लगता है। हम सभी को जानकर यह आश्चर्य होगा कि डॉ मुखर्जी ने बंगाल के विभाजन की मांग इसलिए की थी ताकि हिंदू-बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में शामिल होने से रोका जा सके। कोलकाता सहित आज का पश्चिम बंगाल यदि आज भारत में है तो उसका एकमात्र श्रेय डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी को ही जाता है। 21 अक्टूबर 1951 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक परम पूजनीय माधव गोलवरकर जी से परामर्श लेकर डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। वही जनसंघ आज भारतीय जनता पार्टी के रूप में विख्यात है।

डॉ मुखर्जी से प्रभावित होकर जवाहरलाल नेहरू ने गैर- कांग्रेसी मंत्री के रूप में उद्योग और आपूर्ति मंत्रालय का कार्यभार सौंपा था

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की योग्यता, विद्वता एवं लोकप्रियता से प्रभावित होकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारत के प्रथम मंत्रिमंडल गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में उद्योग और आपूर्ति मंत्रालय का कार्यभार सौंपा था। उद्योग मंत्री के रूप में उन्होंने चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना तथा सिंदरी में खाद का कारखाना स्थापित करवाया था। उनके सहयोग से ही हैदराबाद के निजाम को हैदराबाद का भारत में विलय करना पड़ा था। डॉ मुखर्जी भारत सेवा आश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द जी महाराज के विचारों से प्रेरित थे और उन्हें अपना गुरु मानते थे।

डॉ मुखर्जी के सपनों को पूरा कर रहे हैं पीएम नरेंद्र मोदी 

गांधी जी और नेहरू की मुस्लिम तुष्टिकरण का वे सदा विरोध करते थे। नेहरू जी द्वारा कश्मीर को धारा 370 के माध्यम से विशेष दर्जा दिया गया था। उस समय कश्मीर में प्रवेश करने के लिए परमिट लेना पड़ता था। बिना परमिट के कोई नहीं जा सकता था। डॉ मुखर्जी ने कश्मीर के दो प्रधान, दो निशान तथा दो विधान का विरोध किया तथा धारा 370 को समाप्त करने की मांग की। 8 मई 1953 को अटल बिहारी वाजपेयी, वैद्य गुरुदत्त,  टेकचंद आदि को लेकर जम्मू-कश्मीर के लिए वे कूच कर गए। सीमा प्रवेश के बाद 11 मई को श्रीनगर जाते समय उनको जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार किया गया। उन्हें वहां के जेल में रखा गया। 40 दिनों तक डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जेल में बंद रहे। 22 जून को उनकी तबीयत खराब हुई और 23 जून को पुलिस की हिरासत में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। 5 अगस्त 2019 को डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सपना उस समय साकार हुआ, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में धारा 370 को खत्म कर दिया गया।

जन्म बंगाल में बलिदान कश्मीर में 

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ऐसे विलक्षण नेता थे, जिनका जन्म तो बंगाल में हुआ था, परंतु जिनका बलिदान राष्ट्रीय एकता के लिए कश्मीर में हुआ था। इस दृष्टि से राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की रक्षा के लिए अपने जीवन को उत्सर्ग करनेवाले डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी स्वतंत्र भारत के प्रथम राजनीतिक बलिदानी कहे जा सकते हैं। ऐसे हुतात्म (शहीद) डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धा-सुमन अर्पित एवं उन्हें शत-शत नमन।

Baba Wani
Author: Baba Wani

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