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सरस्वती शिशु मंदिर खपरोडीह में सप्तशक्ति संगम का भव्य आयोजन | देवघर
देवघर के सरस्वती शिशु मंदिर खपरोडीह में आरएसएस के शताब्दी वर्ष पर विद्या भारती के तत्वावधान में सप्तशक्ति संगम का भव्य आयोजन, महिलाओं की भूमिका, नारी शक्ति और भारतीय कुटुंब व्यवस्था पर विस्तृत विचार-विमर्श।
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सरस्वती शिशु मंदिर खपरोडीह में सप्तशक्ति संगम का भव्य आयोजन
आरएसएस के शताब्दी वर्ष पर विद्या भारती के तत्वावधान में महिलाओं की भूमिका और कुटुंब व्यवस्था पर हुआ गहन विचार-विमर्श
देवघर।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में सोमवार को शहर के सीताबी मंडल सरस्वती शिशु मंदिर, खपरोडीह, देवघर में विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के अनुसार सप्तशक्ति संगम का भव्य, अनुशासित एवं प्रेरणादायी आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य नारी शक्ति की सामाजिक भूमिका को सशक्त रूप से प्रस्तुत करना, भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणा कुटुंब व्यवस्था को मजबूत करना तथा महिलाओं को संगठनात्मक चेतना से जोड़ना रहा।
कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं वंदना के साथ हुई। दीप प्रज्ज्वलन के साथ ही सभागार का वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा, संस्कार और सकारात्मक भावनाओं से ओत-प्रोत हो गया। उपस्थित माताओं-बहनों ने पूरे अनुशासन और श्रद्धा भाव के साथ कार्यक्रम में सहभागिता की।
इस अवसर पर कार्यक्रम की मुख्य अतिथि एवं वक्ता के रूप में लता रानी तथा सोमा बागची उपस्थित रहीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्यालय की सचिव रीता चौरसिया ने की। कार्यक्रम की प्रस्तावना खुशबू कुमारी दीदी ने रखी, जिसमें उन्होंने सप्तशक्ति संगम के उद्देश्य, उसकी अवधारणा तथा समाज में इसकी आवश्यकता पर विस्तार से प्रकाश डाला।
मुख्य वक्ता लता रानी ने अपने प्रेरक संबोधन में भारतीय कुटुंब व्यवस्था पर जोर देते हुए कहा कि संयुक्त परिवार भारतीय समाज की सबसे मजबूत आधारशिला है। उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवार केवल रहने की व्यवस्था नहीं, बल्कि संस्कारों के संवाहक होते हैं। परिवार के माध्यम से ही बच्चों में अनुशासन, सहयोग, सेवा भाव और सामाजिक जिम्मेदारी का विकास होता है। उन्होंने कहा कि आज के बदलते सामाजिक परिवेश में एकल परिवार की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण कई सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, ऐसे में संयुक्त परिवार की अवधारणा को पुनः सशक्त करने की आवश्यकता है।
लता रानी ने कहा कि महिलाओं की भूमिका परिवार में केवल गृहस्थी तक सीमित नहीं है, बल्कि वही परिवार की संस्कार वाहक होती हैं। उनके विचार, आचरण और निर्णय समाज की दिशा तय करते हैं। उन्होंने माताओं-बहनों से आह्वान किया कि वे अपने परिवार में संस्कारों की जड़ें मजबूत करें।
वहीं दूसरी मुख्य वक्ता सोमा बागची ने भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि नारी शक्ति समाज, शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है। उन्होंने कहा कि इतिहास साक्षी है कि जब-जब महिलाओं को उचित अवसर मिला है, तब-तब समाज और राष्ट्र ने प्रगति की नई ऊंचाइयों को छुआ है।
सोमा बागची ने कहा कि आज की महिला केवल परिवार की जिम्मेदारी निभाने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह शिक्षा, प्रशासन, सामाजिक कार्य और राष्ट्र निर्माण में भी अग्रणी भूमिका निभा रही है। उन्होंने माताओं-बहनों से आत्मनिर्भर बनने, संगठित रहने और सामाजिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाने का आह्वान किया।

कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में रीता चौरसिया ने सप्तशक्ति संगम जैसे आयोजनों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम महिलाओं में आत्मविश्वास, संगठनात्मक क्षमता और सामाजिक दायित्व की भावना को सुदृढ़ करते हैं। उन्होंने कहा कि विद्या भारती शिक्षा के साथ-साथ संस्कार, सेवा और संगठन के मूल्यों को समाज तक पहुंचाने का कार्य कर रही है।
कार्यक्रम के दौरान विद्यालय की बहनों (बालिकाओं) द्वारा सावित्रीबाई फुले, महादेवी वर्मा, लक्ष्मीबाई केलकर सहित अन्य महान विभूतियों के जीवन पर आधारित प्रेरक झलकियों की सुंदर प्रस्तुति दी गई। इन प्रस्तुतियों के माध्यम से बालिकाओं ने नारी शिक्षा, सामाजिक चेतना और राष्ट्रसेवा का सशक्त संदेश दिया। उपस्थित माताओं-बहनों ने इन प्रस्तुतियों की मुक्त कंठ से सराहना की।
कार्यक्रम के अंतिम चरण में अभिभावक नीतू वर्णवाल एवं समिति सदस्य अंजना मंडल ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन महिलाओं को अपनी भूमिका और दायित्वों को समझने का अवसर प्रदान करते हैं। उन्होंने विद्यालय प्रबंधन एवं आयोजन समिति के प्रयासों की प्रशंसा की।
धन्यवाद ज्ञापन विद्यालय की आचार्या स्वाति दीदी द्वारा किया गया। उन्होंने कार्यक्रम की सफलता में योगदान देने वाले सभी अतिथियों, वक्ताओं, माताओं-बहनों, विद्यालय समिति, आचार्य-आचार्याओं तथा छात्र-छात्राओं के प्रति आभार व्यक्त किया। मंच संचालन सुष्मिता ने अत्यंत प्रभावशाली और सुसंगठित ढंग से किया।
कार्यक्रम को सफल बनाने में विद्यालय की आचार्या रूपसखा, राबो, प्रियंका, आचार्य दयाल शरण वर्णवाल, प्रधानाचार्य विजय कुमार वर्णवाल, विद्यालय समिति के सभी सदस्य एवं विद्यालय के भैया-बहनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
इस अवसर पर कुल 185 माताओं-बहनों ने सहभागिता की, जो कार्यक्रम की सफलता और समाज में इसकी स्वीकार्यता को दर्शाता है। कार्यक्रम के समापन पर पैकेटिंग प्रसाद ग्रहण कराने के पश्चात खोईचा भरकर माताओं-बहनों को सम्मानपूर्वक विदा किया गया। संपूर्ण आयोजन भारतीय संस्कृति, नारी शक्ति और सामाजिक एकता का सशक्त उदाहरण बना।







